प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 144

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम निर्वाह

कितनी कठिन समस्या है! प्रे के पथ पर चले, तो छल कपट रूपी ठग साथ न हों; विश्वासरूपी मार्गव्यय भी चाहिए। इस पथ में कष्टों की हवा है, विरह की लूएँ चलती हैं और हृदय को दुख दावाग्नि में दग्ध करना पड़ता है। यहाँ शोक का नद है, जहा विषाद के भयंकर घड़ियाल पकड़ लेते हैं, और कठोरता की तेज धारा को थहाना पड़ता है। प्रेम है तो अत्यंत सुकोमल, किन्तु अंत तक उसका एकरस निभाना महान् कठिन है।

इसी तरह बोधाने भी ऐसी ही अनेक कठिनाइयों का दिग्दर्शन कराते हुए अंत में यही निश्चय किया है-

एक हि ठौर अनेक मुसक्किल यारी कै मीतसों प्रीति निबाहिबो।

प्रेम करने में अपना क्या जाता है। मुफ्त ही आशिक बन जाने में अपना क्या बिगाड़ता है। पर, हाँ, आगे कठिनाई है। प्रेम का निभाना सुगम नहीं। वहाँ साँस फूलने लगती है, जी घबराने लगता है-

नेहा सब कोऊत्र करै कहा करे में जात।
करिबो और निबाहिबो बड़ी कठिन यह बात।। - बोधा

कुछ भी हो, अब तो नेह निभाना ही है। भारी भूल होगी, ऐसा कहीं सचमुच कर न बैठना। प्रेम की निभाने में शरीर तक से हाथ धो बैठोगे। इसकी चिन्ता नहीं, शरीर रहे या जाय। कोई फिक्र नहीं, मन भी हाथ से छूट जाय, दिल भी जख्मी हो जाय, तन भी उसी में लग जाय। यह सिर भी हँसते हँसते प्रेम भगवान् के चरणों पर चढ़ा दिया जाएगा। जैसे बने तैसे अब तो प्रेम को अंत तक निभाना ही है-

नेह निभाये ही बनै, सोचे बनै न आन।
तन दे, मन दे, सीस दे, नेह न दीजै जान।। - कबीर

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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