प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम निर्वाहआपुहितें सूली चढ़ि जैबो है सहज धनो, सोऊ अति सहज सती कौ तन दाहिबो; दीनदयालु गिरि भी प्रेम निर्वाह को अत्यंत कठिन कह रहे हैं। कहते हैं कि प्रेम है तो अत्यंत मृदुल, पर अंत तक उसका निबाहना बड़ा कठिन है- छल बंचक हीन चलै पथ याहि प्रतीति सुसंबल चाहनो है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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