प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम निर्वाहप्रेमियों! यह निश्चय कर लो कि- और जो सब कुछ सहने को तैयार नहीं हो, तो प्रेम का स्वाँग रचा ही क्यों! प्रेम का निभाना जो नहीं जानता उसे स्नेह नदी में धंसना ही न चाहिए- बल्कि अब तारीफ तो इसमें है कि तुम्हारे अहदे मुहब्बत का टूटना मुश्किल ही नहीं, गैरमुमकिन माना जाय। इसी अहद पर चलने में प्रेमियों! तुम्हारी शेर दिली है, इसी प्रण के पालने में तुम्हारा परम पुरुषार्थ है। प्रेम के जीवन में कभी कोई जरूरत आ पड़े तो उस प्यारे पपीहे को अपना गुरु बना लेना। क्योंकि आदि से अंत तक प्रेम का एकरस निभाना एक चाह भरा चातक ही जानता है। रटत रटत रसना लटी, तृषा सूखियो अंग। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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