प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम मैत्रीरम्याणि वीक्ष्य मधुरांश्च निशम्य शब्दान् अर्थात्- लखि कैं सुंदर वस्तु अरु मधुर गीत सुनि कोई। कविवर टेनीसन ने भी नीचे की कविता में उपर्युक्त सिद्धान्त का अक्षरशः समर्थन किया है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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