प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 138

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम मैत्री

क्या ही सुंदर सूक्ति है-

धिग व्योम्नो महिमानमेतु दलशः प्रोच्चैस्तदीयं पदं
निन्द्यां दैवगतिं प्रयात्वभवतिस्तस्यास्तु शून्यस्य वा।
येनोरिक्षप्तकरस्य नष्टमहसः श्रान्तस्य सन्तापिनो
मित्रस्यापि निराश्रयस्य न कृतं धृत्यै करालम्बनम्।।

धिक्कार है उस महामहिम आकाश की महिमा को! उसका वह उच्च पद खण्ड खण्ड होकर गिर पड़े। उसे निन्दनीय गति प्राप्त हो।

उस हृदय शून्य का न होना ही अच्छा है। अरे, वह कैसा नीच है। उसने अपने मित्र (सूर्य) का भी संकट के समय साथ न दिया। उस मित्र को भी हाथ का सहारा देकर न सम्हाला, जो श्रान्त, निस्तेज और निराश्रय होकर सहारे के लिए हाथ पसारे हुए था। उसके देखते देखते बेचारा विपत् सागर में डूब गया। धिक्कार है उस सहृदयता शून्य असीम आकाश के अतुल वैभव को।

जिस जटिल जन्मान्तर के सिद्धांत के स्थिर करने में बड़े बड़े दार्शनिक पंडित परेशान रहते हैं, उसे हम कभी कभी प्रेम के विमल दर्पण में यो ही प्रतिविम्बित देख लिया करते हैं। बिना किसी कारण के, किसी व्यक्ति या किसी स्थान को पहली ही बार देखकर, यदि हमारे हृदय में एक अमन्द उत्साहमयी, अलौकिक आनन्दप्रदा और प्रेम सम्भूता ममता उत्पन्न हो जाय, तो क्यों न हम विश्वास कर लें कि उस व्यक्ति या उस स्थान के स्थान अवश्यमेव हमारा जननान्तर सौहार्द्र रहा आया है। किसी व्यक्ति के साथ इस प्रकार की दैवी प्रीति ही सत्य, नित्य और कल्याणकारिणी मैत्री है। जननान्तर सौहार्द्र पर कविताकामिनी कान्त कालिदास की कैसी सुंदर सरस सूक्ति है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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