प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम मैत्रीकैसे बिहाल बिवाइन सों भये, कंटक जाल गड़े पग जोये। हाय, महादुख पाये सखा, तुम आये इतै न, कितै दिन खोये! वही, वास्तव में, लोकमान्य महापुरुष है जो एक दीन दरिद्र को अपना अभिन्न हृदय मित्र मानकर प्रेमपूर्वक उसकी सेवा करता है। कविवर रहीम ने कहा है- जे गरीब पर हित करैं, ते ‘रहीम’ बड़ लोग। महान् की महत्ता इसी में है कि वह अपने दीन हीन सुहृदों के साथ सहृदयापूर्ण समवेदना प्रकटकर उन्हें अपनी आँखों पर बिठाये रहे। इसी में महामहिम की महिमा है, नहीं तो- एक कवि ने हृदय शून्य व्यक्ति की तुलना महिमामय आकाश के साथ की है, जिसने विपत्ति के समय अपने मित्र सूर्य को क्षितिज में गिरते हुए सम्हालातक नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज