प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम मैत्रीअब आचार्य भिखारीदास के सरस शब्दों में इस भावकों देखें- ‘दास’ परस्पर प्रेम लख्यौ गुन छीर कौ नीर मिले सरसातु है। कवि कल्प तरु बुन्देल वीर महाराज छत्रसाल ने भी नीर क्षीर मैत्री का समुचित समर्थन किया है- एक सो सुमाय, एक रूप मिलि जाय जहाँ, संकट के समय दोनों एक दूसरे के कैसे काम आते हैं। विपत् के ही दिनों में तो सच्ची मित्रता की परीक्षा होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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