प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम मैत्रीऐसे प्रेमी मित्र इस स्वार्थी संसार में आज कितने हैं- सुखों की चाहें हैं सबमें, हम सभी अब दिन दिन कपटी होते जा रहे हैं, क्योंकि हमारा जीवन ही प्रेमहीन है। न हम ही किसी के दिली दोस्त हैं, न हमारा ही कोई सच्चा मित्र है। हम मित्र नहीं, तिजारती बनिये हैं। हाँ, हमारा दिल मजीठ के रंग में रंगे हुए कपड़े की तरह होते, तो आज हमारा दोस्ती का दावा सच्चा कहा जा सकता। हमारे दिलों पर न वह पक्का रंग है, और न हम किसी के दोस्त कहलाने लायक हैं। संतवर पलटूदास ने कहा है- ‘पलटू’ ऐसी प्रीति करु, ज्यों मजीठ कौ रंग। पर, अब तो भाई रोना आता है। किससे तो मित्रता करें और किससे प्रीति जोड़ें- ‘पलटू’ मैं रोवन लगा, जरौ जगत की रीति। मित्रता किसी से करनी हो तो अभिन्न हृदय दूध और पानी की प्यारी जोड़ी से कुछ सीख लो। दोनों दिलवरों के दिल कैसे घुल मिलकर एक हो गये हैं। दूध जहाँ जहाँ जिस भाव पर बिकता है, पानी को भी वहाँ वहाँ अपने ही मोल पर बिकवाता है। जब आग दूध को जलाने लगती है, तब अपने मित्र के साथ जल भी खुद जलने लगता है। और बिना पानी के दूध उफना उफनाकर आग में जब गिरने लगता है, तब जल ही उसे सान्त्वना देकर असह्य अग्नि दाह से बचाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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