प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 134

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम मैत्री

ऐसे प्रेमी मित्र इस स्वार्थी संसार में आज कितने हैं-

सुखों की चाहें हैं सबमें,
नहीं मतलब किसको प्यारा?
आँखों में बसने वाले हैं,
कौन है आँखों का तारा। - हरिऔध

हम सभी अब दिन दिन कपटी होते जा रहे हैं, क्योंकि हमारा जीवन ही प्रेमहीन है। न हम ही किसी के दिली दोस्त हैं, न हमारा ही कोई सच्चा मित्र है। हम मित्र नहीं, तिजारती बनिये हैं। हाँ, हमारा दिल मजीठ के रंग में रंगे हुए कपड़े की तरह होते, तो आज हमारा दोस्ती का दावा सच्चा कहा जा सकता। हमारे दिलों पर न वह पक्का रंग है, और न हम किसी के दोस्त कहलाने लायक हैं। संतवर पलटूदास ने कहा है-

‘पलटू’ ऐसी प्रीति करु, ज्यों मजीठ कौ रंग।
टूक टूक कपड़ा उड़ै, रंग न छोड़ै संग।।

पर, अब तो भाई रोना आता है। किससे तो मित्रता करें और किससे प्रीति जोड़ें-

‘पलटू’ मैं रोवन लगा, जरौ जगत की रीति।
जहँ देखो तहँ कपट है, कासों कीजै प्रीति।।

मित्रता किसी से करनी हो तो अभिन्न हृदय दूध और पानी की प्यारी जोड़ी से कुछ सीख लो। दोनों दिलवरों के दिल कैसे घुल मिलकर एक हो गये हैं। दूध जहाँ जहाँ जिस भाव पर बिकता है, पानी को भी वहाँ वहाँ अपने ही मोल पर बिकवाता है। जब आग दूध को जलाने लगती है, तब अपने मित्र के साथ जल भी खुद जलने लगता है। और बिना पानी के दूध उफना उफनाकर आग में जब गिरने लगता है, तब जल ही उसे सान्त्वना देकर असह्य अग्नि दाह से बचाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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