प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 133

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम मैत्री

‘रहिमन’ प्रीति न कीजिए, जस खीराने कीन।
ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फाँके तीन।।

जिसके हृदय तल में प्रेम का अंकुर नहीं उगा, वही कपट का आश्रय लेगा। प्रेम का निवास्थान सत्य में है और कपट का असत्य में। अतः प्रेम और कपट, सत्य और असत्य एक साथ कैसे रह सकते हैं? यह कह देना तो बहुत ही आसान है कि हमारा तुम्हारा मन मिल गया है, अब कौन हमें तुम्हें जुदा कर सकता है? पर मन का मिल जाना है महान् कठिन। जरा सी ठेस लगते ही, हमलोगों के घुले मिले हुए मन एक क्षण में अलग हो जाते हैं। ऐसा सच्चे प्रेम के अभाव से ही होता है। यदि प्रेम ने हमारे दिलों को मिला कर एक कर दिया होता, तो वे विलग होते ही क्यों? इसलिए प्रेम के मिलाये हुए मन ही सच्चे मिले हुए मन हैं-

‘धरनि’ मन मिलिबो कहा, तनिक माहिं बिलगाहिं।
मन कौ मिलन सराहिए, एकमेक ह्वै जाहिं।।

मिले हुए दिलों का एक निराला रंग होता है। अपने अपने स्वार्थ को छोड़कर वे प्रेम का रंग धारण कर लेते हैं। हल दी अपनी जर्दी को छोड़ देती है और चना अपनी सफेदी को। दोनों मिलकर प्रेम की एक निराली लाली में रंग जाते हैं। ऐसी तदाकार प्रीति ही परम प्रशंसनीय है-

‘रहिमन’ प्रीति सराहिए, मिले होत रंग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै तजै सफेदी चून।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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