प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 132

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम मैत्री

फिर भी ‘प्रेमी ताकों जानिये, देइ मित्र पर प्रान’ इस कसौटी पर आप भौंरे की खोटी मित्रता को कसने जा रहे हैं? भ्रमर की स्वार्थमयी प्रीति कहीं मित्रता का नाम पा सकती है? मित्रता तो, बस, जल के साथ मीन की है। केवल उसे ही ‘देइ मित्र पर प्रान’ की प्राणान्त परीक्षा में आप सर्वप्रथम उत्तीर्ण पायेंगे-

धनि ‘रहीम’ गति मीन की, जल बिछुरत जिय जाय।
जियत कंज तजि अनत बस, कहा मौंर कौ माय।।

महात्मा सूरदास ने भी मधुकर की स्वार्थमयी मित्रता पर असंतोष प्रकट किया है-

मधुकर काके मीत भए?
दिवस चार की प्रीति सगाई, सो लै अनत गए।।
डहकत फिरत आपने स्वारथ, पाखँड और ठए।
चाड़ै सरे चिन्हारी मेटी, करत हैं प्रीति नए।।

मतलब पूरा हो जाने पर इतना भी तो खयाल नहीं रहता कि वह किसी समय का अपना अभिन्न हृदय मित्र आज कौन और क्या है! कल एक अभिन्न हृदय मित्र था, आज दूसरा है! कल कोई तीसरा जिगरी दोस्त बना लिया जाएगा और परसों चौथा! यह भी भला कोई मित्रता है, कोई प्रीति है।

निष्कपट मैत्री निष्काम प्रेमियों में ही पायी जाती है। प्रेम पूर्ण मित्रता में कहीं छल कपट स्थान पा सकता है? कपटी मित्र से तो, भाई, निष्कपट शत्रु ही कहीं अच्छा है। रहीम ने कपटी मित्र की तुलना खीरे के साथ की है और खूब की है। ऊपर से तो एक दीख पड़ता है, पर भीतर अलग अलग तीन फाँकें होती हैं। पर जो सच्चा प्रेमी है, उसका बाहर भीतर एक सा रूप होता है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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