प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 128

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम पंथ

ऐसा है यह मार्ग! धन्य हैं वे आशिक फ़कीर, जिन्होंने इस पंथ पर चलकर अपने दर्दीले दिल को और खुद अपने को भी खो दिया। मुबारक हों वे प्रेम रस से लबा लब भरे हुए दिल के कटोरे, जो इस गली में उसे खोजते हुए, खुद ही कहीं गुम हो गये। जुस्तजू बस, इसे कहते हैं। दिल खो जाता है और खुदा अपना भी पतानहीं चलता। नुकसान ही नुकसान है। नफाका कहीं नाम भी नहीं। फिर भी सच्चे प्रेमी पंथ पर चलने से रुकते नहीं। जरा, उनकी हिम्मत तो देखो। इसे कहते हैं साहस। कहते हैं कि मार्ग कैसा ही कठिन हो, हम डरने वाले नहीं। हमारा पैर उस पर डिगने वाला नहीं, फिसलने का नहीं। अजी हम तो हम, हमारे खून को देखो। जब कातिल हमें कत्ल करता है, तब वह उसकी तलवार से कैसा चिपट जाता है। जब तलवार की धार से हमारा खून तक अलग होना नहीं चाहता, तब क्या यह सोचा जा सकता कि हम इस प्रेमपंथ को घबराकर छोड़ देंगे? उस्ताद जौक का यह सुनहला भाव है सो, अब उन्हीं के शब्दों में-

सुराते इश्क पर अजबस के है साबित कदम मेरा,
दमे शमशेर कातिल पर भी खूँ जाता है जम मेरा।
खूब! किसकी तारीफ करें- शमशेर की या खून की! वाह!
दमे शमशेर कातिल पर भी खूँ जाता है जम मेरा।

कैसा अनोखा है यह प्रेमपंथ! कौन इसकी महिमा का पार पा सकता है। इस पर पथिक चलते तो हैं, पर भूले हुए से। होशयार से दिखते हैं,पर रहते हैं बेहोश।आनन्दघन कहते हैं-

जान घनआऩँद अनोखो यह प्रेम पंथ,
भूले से चलत रहैं सुधिके थकित ह्वै।

इससे इस मार्ग का यथार्थ रूप आज तक कोई समझ नहीं सका। मारग प्रेम कौ को समुझै, ‘हरिचंद’ जथारथ होत जथा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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