प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम पंथऐसा है यह मार्ग! धन्य हैं वे आशिक फ़कीर, जिन्होंने इस पंथ पर चलकर अपने दर्दीले दिल को और खुद अपने को भी खो दिया। मुबारक हों वे प्रेम रस से लबा लब भरे हुए दिल के कटोरे, जो इस गली में उसे खोजते हुए, खुद ही कहीं गुम हो गये। जुस्तजू बस, इसे कहते हैं। दिल खो जाता है और खुदा अपना भी पतानहीं चलता। नुकसान ही नुकसान है। नफाका कहीं नाम भी नहीं। फिर भी सच्चे प्रेमी पंथ पर चलने से रुकते नहीं। जरा, उनकी हिम्मत तो देखो। इसे कहते हैं साहस। कहते हैं कि मार्ग कैसा ही कठिन हो, हम डरने वाले नहीं। हमारा पैर उस पर डिगने वाला नहीं, फिसलने का नहीं। अजी हम तो हम, हमारे खून को देखो। जब कातिल हमें कत्ल करता है, तब वह उसकी तलवार से कैसा चिपट जाता है। जब तलवार की धार से हमारा खून तक अलग होना नहीं चाहता, तब क्या यह सोचा जा सकता कि हम इस प्रेमपंथ को घबराकर छोड़ देंगे? उस्ताद जौक का यह सुनहला भाव है सो, अब उन्हीं के शब्दों में- सुराते इश्क पर अजबस के है साबित कदम मेरा, कैसा अनोखा है यह प्रेमपंथ! कौन इसकी महिमा का पार पा सकता है। इस पर पथिक चलते तो हैं, पर भूले हुए से। होशयार से दिखते हैं,पर रहते हैं बेहोश।आनन्दघन कहते हैं- जान घनआऩँद अनोखो यह प्रेम पंथ, इससे इस मार्ग का यथार्थ रूप आज तक कोई समझ नहीं सका। मारग प्रेम कौ को समुझै, ‘हरिचंद’ जथारथ होत जथा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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