प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम पंथबेचारी बाट का क्या दोष है। पथिक ही राह छोड़ ऊबड़ खाबड़ में होकर जा रहा है। साईँ के द्वार पर इस तरह वह कैसे पहुँच पायेगा- बाट बिचारी क्या करै, पथी न चलै सुधार। बस, बात यही है कि जब तक हमारे हृदय में अहंकार रहेगा, तब तक हम कदापि इस सुगम मार्ग पर ठीक तौर से न चल सकेंगे। इस राह पर चलने के तो, भाई, मंसूर जैसे अलमस्त आशिक़ ही आदी हैं। प्रेम की गली कैसी पेचीदा है! ‘गोकुल गाँव को पैड़ों ही न्यारो’ है। यहाँ एक नहीं, दो- दो चीजें लापता हो जाती हैं। ‘मैं’ भी खो जाता हूँ और मेरा दिल भी खो जाता है। मैं दिल को खोजता हूँ और दिल मुझे खोजता है। कैसी अनोखी पहेली है यह! तेरी गली में आकर खोये गये हैं दोनों, किसी खोये हुए को खोजने चले थे। बलिहारी हमारी खोज पर। धन्य है यह प्रेम पंथ! खुद अपे को ही खो दिया। मीरसाहब हैरान और परेशान हो कहते हैं- उसे ढूँढ़ते ‘मीर’ खोये गये, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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