प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम पंथजब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं, हम नाहिं। प्रेम पंथ के इस अनधिकारी मूढ़ पथिक ने भी कुछ ऐसा ही आयँ- बायँ सायँ बक डाला है। उस बकवास पर कोई दाद तो न देगा, पर वह ऊटपटांग पद फिर भी लिखे देता हूँ। शायद उससे आपका कुछ मन बहलाव हो जाय- खोर है रस की साँकरिया।। इस मार्ग को प्रेमियों ने दुर्गम और सुगम दोनों ही रूप में दिखाया है। संत शिरोमणि कबीर ने एक साखी में यह कहा है कि- और दूसरी साखी में आप यह फरमाते हैं कि- मार्ग तो बड़ा ही सरल और सुगम है, पर तेरा उस पर चलना ही ऊटपटाँग सा है। पगली, नाचना तो खुद जानती नहीं, आँगन को टेढ़ा बतलाती है। हाँ, सच तो है- पिय का मारग सुगम है, तेरा चलन अबेड़ा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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