प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम पंथइसी से तो कहते हैं कि- ‘रहिमन’ मारग प्रेम कौ, मत मति हीन मझाव। फिर भी, कैसी दिल्लगी है, जो ये कामान्ध बनिये प्रेमियों का भेष बना बनाकर, इस पवित्र प्रेम पंथर पर चलने की अनधिकार चेष्टा करते ही जा रहे हैं! यह देखो, ये लोग अपनी अपनी काम वासनाओं को मोह के बैलों पर लाद लादकर इस प्रेम मार्ग से जाने की तैयारी कर रहे हैं! किस पंथ पर जाना चाहते हैं? अरे, उसी पर जिस पर चींटी का भी पैर फिसलता है! उस पर जाना इन दुनियादारों ने मजाक बना रखा है- ‘रहिमन’ पैड़ो प्रेम कौ, निपट सिलसिली गैल। यह गली सचमुच इतनी तंग है कि इस पर खुदी से खाली होकर ही कोई जा सकता है। खुदी और प्यारे की चाह इन दोनों की यहाँ एक साथ गुजर नहीं है। कबीर साहब ने क्या अच्छा कहा है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज