प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम पंथमाना कि- है आगे परबत कै बाटा। विषम पहार अगम सुठि घाटा।। पर उस पर गुजर कर मंजिले मकसूद को पा जाना भी तो कोई चीज है। अहा! प्रेम पंथ जो पहुँचै पारा। बहुरि न मिलै आइ एहि छारा।। इसी राह से हम उस पार पहुँच जाते हैं, जहाँ से फिर लौट कर इधर आना नहीं होता। इस गली की धूल छानकर फिर गली गली की धूल नहीं छाननी पड़ती। अरे, तैयार हो जाओ, हम सब भूले भटके अब उसी पंथ पर चलना चाहते हैं। कैसी तैयारी करोगे? सबसे पहले तो इस लोक की लाज को और उस लोक की चिन्ता को प्रीति पर न्योछावर कर दो। यदि तुम्हारे गाँव का, तुम्हारे घर का या तुम्हारी देह का नाता तुम्हारे प्रेम मार्ग में बाधक बन रहा हो, तो उसे भी प्रीति पर बलि कर दो। प्रीति नीति को वही निभा सकेगा, जो यह समझ बैठा है कि प्रेमियों के धड़ पर सिर तो जन्म से ही नहीं होता। प्यारे मित्र! यदि तुम संसार के भय से डर रहे हो, तो हाथ जोड़कर तुमसे यही विनय है कि प्रीति के मार्ग पर भूलकर भी कभी पैर न रखना। कविवर बोधा के सुंदर शब्दों में- लोक की लाज, औ सोच प्रलोक कौ वारिये प्रीति के ऊपर दोऊ। यह ऐसा अगम पंथ न होता, तो इस पर आज सभी ऐरे गैरे चलते दिखायी देते! जायसी ने कहा है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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