प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 124

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम पंथ

माना कि-

है आगे परबत कै बाटा। विषम पहार अगम सुठि घाटा।।
बिच-बिच नदी खोह और नारा। ठाँवहिं ठाँव बैठ बटपारा।। - जायसी

पर उस पर गुजर कर मंजिले मकसूद को पा जाना भी तो कोई चीज है। अहा!

प्रेम पंथ जो पहुँचै पारा। बहुरि न मिलै आइ एहि छारा।।
तेहि रे, पंथ हम चाहहिं गवना। होहु सँजूत बहुरि नहीं अवन।। - जायसी

इसी राह से हम उस पार पहुँच जाते हैं, जहाँ से फिर लौट कर इधर आना नहीं होता। इस गली की धूल छानकर फिर गली गली की धूल नहीं छाननी पड़ती। अरे, तैयार हो जाओ, हम सब भूले भटके अब उसी पंथ पर चलना चाहते हैं। कैसी तैयारी करोगे? सबसे पहले तो इस लोक की लाज को और उस लोक की चिन्ता को प्रीति पर न्योछावर कर दो। यदि तुम्हारे गाँव का, तुम्हारे घर का या तुम्हारी देह का नाता तुम्हारे प्रेम मार्ग में बाधक बन रहा हो, तो उसे भी प्रीति पर बलि कर दो। प्रीति नीति को वही निभा सकेगा, जो यह समझ बैठा है कि प्रेमियों के धड़ पर सिर तो जन्म से ही नहीं होता। प्यारे मित्र! यदि तुम संसार के भय से डर रहे हो, तो हाथ जोड़कर तुमसे यही विनय है कि प्रीति के मार्ग पर भूलकर भी कभी पैर न रखना। कविवर बोधा के सुंदर शब्दों में-

लोक की लाज, औ सोच प्रलोक कौ वारिये प्रीति के ऊपर दोऊ।
गाँव कौ, गेह कौ, देह कौ नातो सनेह में हाँतो करै पुनि सोऊ।।
‘बोधा’ सुनीति निहाब करै, धर ऊपर जाके नहीं सिर होऊ।
लोक की भीति डेरात जो मीत, तौ प्रीति के पैड़े परै जनि कोऊ।।

यह ऐसा अगम पंथ न होता, तो इस पर आज सभी ऐरे गैरे चलते दिखायी देते! जायसी ने कहा है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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