प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम पंथकठिन पंथ यह पाँव धरै को, खाँड़े की सी धारा। यहाँ चतुराई काम नहीं देती। यहाँ तो सच्चे का काम है, कपटी का नहीं- अति सूधो सनेह कौ मारग है, जदहँ नेकु सयानप बाँक नहीं। अजी, प्रेमियों की क्या बात कहते हो! इस खड्ग धारा पर पैरों से ही क्या, सरके बल चलने को वे तैयार रहते हैं। अपने प्यारे के मार्ग पर भला, वे अपने अपवित्र पैर रखेंगे! वे तो उस पर अपने सरको पैर बनाकर चलेंगे- बेहोश मतवाले प्रेमीजन प्रेम पंथ पर चलते समय यह नहीं देखा करते कि दिन है या रात, सबेरा है या शाम, उजेला है या अँधेरा! उन्हें इस सबकी सुध नहीं- वे तो उस प्रिय मार्ग पर चलना और केवल चलना ही जानते हैं। जीव का, सच मानो, परम पुरुषार्थ इसी में है कि वह सुराते इश्क पर, प्रेम पंथ पर, सरके बल चलकर किसी दिन उस प्रेम पुरी में अपने प्यारे के कदम चूम ले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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