प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमोन्मादप्रेम का पागल कैसा मौजी जीव होता है, वह पगला मलूक अपनी प्रेम मस्ती में, सुनो जरा, क्या गा रहा है- प्यारे, तेरा मैं दीदार दीवाना। उधर कबीर बाबा भी अपनी धुन में मस्त होकर, अनुराग राग अलाप रहे हैं। वाह! हमन हैं इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या? एक प्रेमोन्मादिनी गोपिका की प्रेम दशा को महाकवि देव ने क्या ही सफल कौशल के साथ अंकित किया है। कुँवर कान्ह की कहानी सुनकर बेचारी को उन्माद सा हो गया है। देखें, उस निठुर कान्ह को भी अब इस पगली की नेह कहानी सुनकर उन्माद होता है या नहीं- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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