प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमोन्मादजबतें कुँवर कान्ह रावरी कला निधान, उस साँवलिया के दरस की दीवानी, उस बांसुरी वाले के प्रेम की पगली आज इस हालत को पहुँच गयी है। प्रेम क्या से क्या कर देता है। वह अपने घर की रानी आज, बैठी, वह बकति बिलोकति बिकानी सी! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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