प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम व्याधिप्रेमियों का मरण! अहा! कैसा सुखदायी मरण होता है- आह! क्या सहल गुज़र जाते हैं जीसे आशिक! वैद्य महाराज, तुम्हारे उस रोगी की आज बड़ी शोचनीय अवस्था है। अब उसकी व्याधि सचमुच असाध्य हो गयी है। तनिक भी दया तुम्हारे हृदय में हो तो अपनी खास दवा देकर अब भी उस गरीब रोगी को बचा लो- थाकी गति अंगन की, मति परि गई मन्द, अस्तु; वैद्य महोदय आये और उन्होंने रोगो को देखा। रोगी का चेहरा खिला हुआ था। आँखों में गुलाबी रंगत थी और ओठों पर एक हलकी सी मुसकराहट। न दर्द था, न घबराहट। वैद्य बेचारे को बड़ा आश्चर्य हुआ। यह कैसी बीमारी। ऐसे रौनकदार चेहरे को बीमार का चेहरा कौन कहेगा। नहीं, बात कुछ और है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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