प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम व्याधिदिल की बीमारी में एक सबसे बड़ी आफत तो, जनाब, यह है कि बेचारे रोगी को कोई तसल्ली देने भी तो नहीं आता। हाँ, कभी कभी कोई खबर लेने आते हैं तो सिर्फ दो- अफसोस और रोना। इस बीमारी में किसी ने साथ दिया है, तो बस इन्हीं दो दिली दोस्तों ने। जौक ने क्या अच्छा कहा है- कमी अफ़सोस है आता, कमी रोना आता, अमीर ने इसका समर्थन किया है- ‘अमीर’ आया जो वक्तेबद तो सबने राह ली अपनी; अफ़सोस औररोना कहों या दर्दोग़म कहो, हैं दो ही इस मरीज़ के सच्चे साथी। दर्द दर्द का साथी भी है और उसकी दवा भी है। दर्द ही दर्द की दवा है। दर्द जब हद से गुजर जाता है,तब वह खुद ही दवा का काम कर जाता है- दर्द की जिससे उपमा दें! दर्द, बस, दर्द सा ही है। चाहे जिस पहलू से देखो, रहेगा दर्द ही। जौक कहते हैं- तो फिर हम दर्द जैसी पुरअसर दवा से नफरत क्यों करें। प्रेम पीरका तो, भाई, हृदय द्वार पर स्वागत करना चाहिए। इस पीर का वर्णन कौन कर सकता है। हृदय वर्णन करना चाहे तो उसके वाणी नहीं और वाणी कुछ कहना चाहे तो उसके हृदय नहीं। बेदिल जबान या बेजबान दिल दर्द मुहब्बत की तसबीर कैसे खींच सकता है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज