प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और सूरदासयशोदा का हृदय स्वभाव से ही अत्यंत स्निग्ध और कोमल है। प्यारा कन्हैया कबसे खेलने गया है, ऐं! अब तक नहीं लौटा! साथ में आज उसका दाऊ भी नहीं है। गाँव के लड़के उस छोटे से कान्ह को दौड़ा दौड़ाकर थका डालेंगे। उन ऊधमी लड़कों के साथ वह भोलाभाला नन्हा सा कृष्ण खेलना क्या जाने? कहीं गिर न पड़ा हो, किसी ने मार पीट न कर दी हो, या कोई कहीं फुसलाकर न ले गया हो। बलराम भी नहीं देख पड़ता। किसे भेजूँ, क्या करूँ? न जाने आज किसने मेरे लाल को बहका लिया- खेलनकों मेरो दूर गयौ। खैर, कहीं से खेलता कूदता यशोदा का हृदय दुलारा गोपाल आ गया। मातृ स्नेह की नदी उमड़ आयी। दौड़कर लाल को गोद में उठा लिया। बार बार मोहन का मुँह चूमने लगो। भैया, आज कहाँ खेलने चले गये थे? तबके गये, मेरे लाल, अब आये! ये सब ग्वाल बाल, न जाने, तुम्हे कहाँ कहाँ दौड़ाते फिरे होंगे। सुना है कि आज वन में एक ‘हाऊ’ आया है। तुम तो, भैया, नन्हे से हो, कुछ जानते समझते तो हो नहीं। लो, अपने इस सखा से ही पूछ लो कि वह कैसा हाऊ है- खेलन दूर जात कित कान्हा? मैं यों ही बक रही हूँ? कुछ सुनते ही नहीं! फिर वही ऊधम! क्यों, न मानोगे? अब रात को कहाँ चले? मेरा प्यारा बच्चा! साँझ हो गयी है, अब अँधेरे में दौड़ना अच्छा नहीं। देखो, मान जाओ, बच्चा! क्या खेलने को फिर सबेरा न होगा- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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