प्रेम योग -वियोगी हरि
दास्य और सूरदासकबहूँ नाहिन गहरु कियो। दूसरा ऐसा कौन शरणागत पालक है, जिसके पैरों को जाकर पकड़ूँ। कोई और मुझे अपनी शरण में ले लेता, तो हे अश रण शरण! तुम्हें आज इतना कष्ट देता ही क्यों- जो जग और बियो हौं पाऊँ। मैं यह कब कहता हूँ कि मेरे साथ न्याय किया जाय। लोग बस, यही कहेंगे न, कि तुमने ‘सूर’ को तारकर अन्याय किया। थोड़ी सी बदनामी ही होगी। सो, सह लेना। बात कैसी तुम्हारे दास की रह जायेगी। अपने सेवक के हित के लिए स्वामी क्या नहीं करता। तुम सब कर सकते हो। तुम स्याह से सफेद और सफेद से स्याब सब कर सकते हो। तुम्हारा किया हुआ अन्याय भी न्याय ही कहा जायेगा। पर इसे अन्यास कहने का साहस करेगा कौन। देखा जाय तो ऐसा अन्याय, वस्तुतः न्याय, तुमने बहुतों के साथ किया है। सैकड़ों बार बार अपने सेवकों का तुमने अनुचित पक्ष लिया है। यह कोई नयी बात न होगी, गरीब परवर! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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