प्रेम योग -वियोगी हरि
दास्यतुमकूँ हम से बहुत हैं, हमकूँ तुम से नाहिं। जो कहीं मुझे अपनी नौकरी से अलग कर दिया, तो फिर मैं कहाँ मारा- मारा फिरूँगा? लोग क्या कहेंगे, जरा ख्याल तो करो। मेरा नहीं, इससे तुम्हारी ही हँसी होगी स्वामी! दीन दयालु सुनें जबतें तबतें मन में कछु ऐसी बसी हैं। और तो नहीं, पर मेरे एक इस विषय की तुम भलीभाँति परीक्ष ले सकते हो कि धक्के मुक्के खाने पर भी मैं तुम्हारे द्वार से हटता हूँ या नहीं। चाहो तो मेरे इस गुण को अपनी कसौटी पर अभी कल लो- तू साहिब, मैं सेवक तेरा। भावै सिर दै सूली मेरा।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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