प्रेम योग -वियोगी हरि
मोह और प्रेममौलाना रूम ने बी किसी की सूरत और रंग पर मरने को प्रेम का नाम नहीं दिया है। बकौले मौलाना, शकल सूरत के बदलते ही कुछ ही दिनों में वह प्रेम नंगा साबित हो जायेगा। जो कभी आग था वह खाक हो जायेगा। कृष्ण वियोगिनी राधा कहती हैं- प्यारे आवें, मृदु चयन कहें, प्यार से अंक लेवें; पहले भावों में मोह का एक हल्का सा उन्माद है, पर दूसरे भावों में तो परम प्रेम का उज्ज्वलतम आदर्श आलोकित हो रहा है। कहीं भी रहें, प्यारे कृष्ण चिरंजीव रहें। घर चाहें न आयें, जगत् का उपकार करते रहें। प्रेम की कैसी पवित्र भावना है! प्यारे जीवें, जगत् हित करें, गेह चाहे न आवें। हमारा प्रेम पात्र भी हम पर प्रेम करे, हमें छोड़ वह और किसी पर प्रेम न करे आदि क्षुद्र भावनाएँ कल्याणकारी प्रेम की नहीं, नाशकारी मोह की है। भला यह भी कोई प्रेम है! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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