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'''हरी-हरी भूमि में हरित तरु झूमि रहे,''' | '''हरी-हरी भूमि में हरित तरु झूमि रहे,''' | ||
'''हरी-हरी बल्लीम बनी विविध विधान की ।''' | '''हरी-हरी बल्लीम बनी विविध विधान की ।''' | ||
− | ''' | + | '''कहें,‘रत्नामकार’त्योंन हरित हिंडोरा परयो ।''' |
'''तापे परी आभा हरी, हरित वितान की ।।''' | '''तापे परी आभा हरी, हरित वितान की ।।''' | ||
'''ह्वै है हिय हरित, हरैं ही चलि हेरो हरि,''' | '''ह्वै है हिय हरित, हरैं ही चलि हेरो हरि,''' |
01:02, 8 अप्रॅल 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
कवियों के श्रीकृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण चंद्र को संसार ने अनेक दृष्टियों से देखा है, किन्तु भावुक कवियों का दृष्टि बिन्दु कुछ निराल ही है। साधारण जनसमुदाय के भगवान श्रीकृष्ण, अथवा आराध्य देव के विशेषण तो दीनदयालु या भक्त वत्सल से लेकर घट-घट के वासी तक जाकर समाप्त हो लेते हैं। ज्ञानियोंकी सूखी सूझ् कुछ आगे बढ़ती है- वे उन्हें अनादि,अनन्त अगोचर निरीह, निराकार, सूक्ष्मातिसूक्ष्म, सर्वव्यापी,जगन्मय, जगदात्मा, परब्रह्मा और परमेश्वर इत्यादि कहते है। अब जरा,इन भक्त कवियों के श्रीकृष्ण को भी देखिये, कैसे कुंज विहार, बनवारी, पीतपटधारी, रसिक,रंगीले, छवीले, फड़क उठती है। दुनियां के श्रीकृष्ण में फीकापन झलक सकता है, किन्तु इन भक्त कवियों के सलोने श्रीकृष्ण तो सर्वथा और सर्वदा मधुरातिमधुर हैं। बसो मेरे नैननि में नंदलाल । |