श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
अधिकार और कर्तव्य
परंतु प्रेमी वेद धर्म छोड़ना नहीं चाहता, प्रेम के प्रकट होने पर वह वेद धर्म ही अपने फलस्वरूप प्रेम पद को प्राप्त हुआ जानकर उस साधक को छोड़ देता है। जो जान-बूझकर छोड़ता है, उसका तो पतन ही होता है-
यह पंथ विषयकामियों का नहीं है, यह मार्ग बाह्य वेष धारियों का नहीं है। यह तो उन सच्चे त्यागियों का पावन पथ है, जो सारे जगत् का मोह और सारी कामनाएँ त्यागकर एक मात्र भगवान को ही भजना चाहते हैं। जिनके हृदय में भोग-लालसा है, उनका तो इस मार्ग पर पैर रखना मानो धधकती हुई अग्नि में कूदना या कालसर्प के मुँह में हाथ देना है-
इसीलिये शुकदेव जी सबको सावधान करते हुए कहते हैं-
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