श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
मोक्ष-संन्यासिनी गोपियाँअरे, यहाँ तो श्याम के सिवा और कुछ है ही नहीं; सारा हृदय तो उससे भरा है, रोम-रोम में तो वह छाया है। सोते-बैठते कभी साथ तो छोड़ता ही नहीं; फिर बताओ, तुम्हारे ज्ञान और योग को रखें कहाँ ?-
तुम्हीं बताओ, क्या किया जाय! व्ह तो हृदय में गड़ गया है और रोम-रोम में ऐसा अड़ गया है कि किसी तरह निकल ही नहीं पाता; भीतर भी वही और बाहर भी सर्वत्र वही!
उद्धव चकित हो गये। सबसे अधिक आश्चर्य तो उन्हे तब हुआ, जब गोपी-कृपा से उन्होंने श्रीगोपीनाथ को गोपियों के बीच सर्वत्र अपनी आँखों के सामने देखा। |
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