श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रेमी के काम-क्रोधादि के पात्र-प्रियतम भगवानतनिक ध्यान देकर देखिये, इस खीझ में कितनी रीझ भरी है। एक दिन लीलामय ने भक्त सखाओं के प्रणयकोप का आनन्द लूटने के लिये खेल में गड़बड़ मचाकर सखाओं को खिझा दिया। सखाओं ने मिलकर निश्चय किया कि ‘इस नटखट को खेल से अलग कर दो।’ श्यामसुन्दर का वियोग तो क्षण भर के लिये भी सहने को उनमें से एक भी तैयार नहीं था; क्योंकि उसे अलग करते ही प्राण अलग हो जाते हैं। परंतु ऊपर से बात गाँठ कर उन्होंने कहा- ‘कन्हैया! तुम स्वयं ही गड़बड़ मचाते हो और फिर तन कर रूठ जाते हो; हटो यहाँ से, हम तुम्हें अपने साथ नहीं खेलने देंगे।’ बस, जहाँ फटकार मिली कि प्राण धन श्यामसुन्दर ढीले पड़ गये। लगे पैरों पड़ने और शपथ खा-खाकर क्षमा माँगने। सूरदास जी ने गाया है-
अब रही मान की बात, सो दूषणरहित मान तो इस प्रेमा भक्ति का एक भूषण ही है। एक समय श्रीराधारानी रूठ गयीं, मान कर बैठीं और सखियों से बोलीं- |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज