श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रेमी के काम-क्रोधादि के पात्र-प्रियतम भगवान
भगवान मनाते-मनाते थक गये और शेष में बोले-
‘धन्य तेरा मान! बड़े-बड़े काम किये; कहीं हार नहीं मानी, कहीं थकावट नहीं प्रतीत हुई। आज तुझे मनाने में मेरा सारा बल बिला गया।’ यह भक्तों की और भगवान की प्रणय- लीला है- इस लीली में राग, काम, क्रोध, मान- सभी हैं; परंतु सभी दूसरे रूप में हैं। सभी पवित्र प्रेम के नामान्तर मात्र हैं, यहाँ का यह सर्व धर्म त्याग ही परम धर्म है। यहाँ की अविधि ही सर्वोपरि प्रेम की विधि है। |
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