श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रेमी के काम-क्रोधादि के पात्र-प्रियतम भगवानआदर्श प्रेममयी भक्तशिरोमणि गोपियाँ प्रियतम भगवान के आँखों से ओझल हो जाने पर विलाप करती हुई कहती हैं-
‘हे यदुकुलशिरोमणि! जो लोग संसार के भय से तुम्हारे चरणों की शरण लेते हैं, तुम्हारे करसरोज उन्हें अभय देकर उनकी अभिलाषाओं को पूर्ण करते हैं। हे प्रियतम! अपने उन्हीं कर कमलों को, जिन से आपने लक्ष्मी का हाथ पकड़ा है, हमारे सिर पर रखिये। हे व्रज वासियों के दुःख को हरने वाले वीर! आपकी मन्द मधुर मुस्कान भक्तों के गर्व का खण्डन करने वाली है। हे सखे! हम आपकी किंकरी हैं, कृपा करके हमें स्वीकार कीजिये और अपना सुन्दर मुख कमल हमें दिखाइये। हे रमण! हे आर्तिनाशन्! तुम्हारे चरणारविन्द प्रणत जनों की कामना पूरी करने वाले हैं, लक्ष्मी जी के द्वारा सदा सेवित हैं, पृथ्वी के आभूषण हैं, विपत्ति काल में ध्यान करने से कल्याण करने वाले है; हे प्रियतम! उन परम कल्याणमय सुशीतल चरणों के हमारे तप्त हृदय पर स्थापित कीजिये।’ इस प्रकार प्रेमी भक्त श्रीकृष्ण के काम से पीड़ित हुए सदा उन्हीं के लिये रोया करते हैं और उन्हें पुकारा करते हैं; और आँखमिचैनी की- सी लीला करने वाले लीलाविहारी भगवान जब उन की प्रेम-पुकार सुनकर त्रिभुवन-कमनीय, योगिजन दुर्लभ, देव-देवप्रत्याशित, ऋषि-मुनि-महापुरुष-चित्ताकर्षक, निखिल-सौन्दर्य-माधुर्यरसामृत- सारभूत, आनन्दकन्द मदनमोहन मन्मथमन्मथ रूप में मन्द-मन्द मुसकाते हुए और मुरली में अपना दिव्य मोहन सुर भरते हुए सहसा प्रकट होकर अपनी प्रेमानन्द-रस-माधुरी चारों ओर बिखेर देते हैं, जब अपने सौन्दर्य-माधुर्य-सुधा सुशीतल वदन विधु की शुभ्रज्योत्स्त्रा चारों ओर छिटका देते हैं, तब वहाँ उन भाग्यवान् दिव्यचक्षु दिव्य- भावापत्र भक्त महात्माओं के चित्तों की क्या अवस्था होती है-इसका वर्णन करने की शक्ति किसी में भी नहीं है। यह अनिर्वचनीय रहस्य है। |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ श्रीमद्भा0 10।31।5–6,13
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज