श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
भगवदवतार का रहस्यप्रेमी के लिये प्यार की प्रत्येक वस्तु प्यारी होती है, कहीं-कहीं तो उससे बढ़कर प्यारी होती है। लौकिक सम्बन्ध में भी हम देखते हैं कि जब किन्हीं लड़के-लड़की का सम्बन्ध हो जाता है, तब घर में किसी से एक- दूसरे का नाम सुनकर या उसके विषय में कोई बात सुनकर वे अपने हृदय में एक प्रकार की गुदगुदी-सी अनुभव करने लगते हैं। प्यारे का वस्त्र, प्यारे का भोजन- यहाँ तक कि प्यारे की फटी जूती भी प्यारी होती है। जब लौकिक प्रेम की ऐसी बात है, वब भगवत्प्रेम के विषय में तो कहना ही क्या है। श्रृंग़वेरपुर में भरत जी भगवान श्री रामचन्द्र के शयन के स्थान में उनके अंग़ से स्पर्शित ‘कुश-साथरी’ को देखकर प्रेमानन्द में मग्र हो गये थे। अक्रूरजी भगवान के चरण चिह्नों को देखकर तन-मन की सुधि भूल गये थे। आज भी जब हम व्रजभूमि को देखते हैं, तब स्वतः ही हमें भगवान श्रीकृष्ण की स्मृति हो आती है और उसमें एक अनोखा आनन्द मिलता है। प्रेम और आनन्द का अविानाभाव- सम्बन्ध है; जहाँ प्रेम है, वहाँ आनन्द है ही। इसी से गोपियों के प्रेम का महत्त्व है। हम जो संसार के दुःखों से घबरा उठते हैं, इसका कारण क्या है? यही कि हम उनमें प्रेमास्पद भगवान की रुचि को, उनके विधान को नहीं देखते, कठोर आघात में उनके सुकोमल कर कमल का स्पर्श नहीं पाते। परंतु भगवान का प्रेमी भक्त किसी कष्ट से नहीं घबराता, क्योंकि वह प्रत्येक वस्तु में भगवान स्पर्श पाता है। |
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