श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रासलीला-रहस्ययह भगवान के श्रीविग्रह की विशेषता है। भाव के द्वारा तो एक प्रस्तरमूर्ति भी परम कल्याण का दान कर सकती है, बिना भाव के ही कल्याणदान भगवद्विग्रह का सहज दान है। भगवान हैं बड़े लीलामय। जहाँ वे अखिल विश्व के विधाता ब्रह्मा, शिव आदि के भी वन्दनीय, निखिल जीवों के प्रत्यगात्मा हैं, वहीं वे लीलानटवर गोपियों के इशारे पर नाचने वाले भी हैं। उन्हीं की इच्छा से, उन्हीं की प्रेमाहान से, उन्हीं के वंशी-निमन्त्रण से प्रेरित होकर गोपियाँ उनके पास आयीं; परंतु उन्होंने ऐसी भावभंगी प्रकट की, ऐसा स्वाँग बनाया, मानो उन्हें गोपियों के आने का कुछ पता ही न हो। कदाचित गोपियों के मुँह से वे उनके हृदय की बात-प्रेम की बात सुनना चाहते रहे हों। सम्भव है, वे विप्रलम्भ के द्वारा उनके मिलन-भाव को परिपुष्ट करना चाहते रहे हों। बहुत करके तो ऐसा लगता है कि कहीं लोग इसे साधारण बात न समझ लें, इसलिये साधारण लोगों के लिये उपदेश और गोपियों का अधिकार भी उन्होंने सबके सामने रख दिया। उन्होंने बतलाया– ‘गोपियो! व्रज में कोई विपत्ति तो नहीं आयी, घोर रात्रि में यहाँ आने का कारण क्या है? घर वाले तुम्हें ढूँढ़ते होंगे, अब यहाँ ठहरना नहीं चाहिये। वन की शोभा देख ली, अब बच्चों और बछड़ों का भी ध्यान करो। धर्म के अनुकूल मोक्ष के खुले हुए द्वार अपने सगे-सम्बन्धियों की सेवा छोड़कर वन मे दर-दर भटकना स्त्रियों के लिये अनुचित है। स्त्री को अपने पति की ही सेवा करनी चाहिये, वह कैसा भी क्यों न हो। यही सनातन धर्म है। इसी के अनुसार तुम्हें चलना चाहिये। मैं जानता हूँ कि तुम सब मुझसे प्रेम करती हो, परन्तु प्रेम में शारीरिक संनिधि आवश्यक नहीं है। श्रवण, स्मरण, दर्शन और ध्यान से संनिध्य की अपेक्षा अधिक प्रेम बढ़ता है। जाओ, तुम सनातन सदाचार का पालन करो। इधर-उधर मन को मत भटकने दो।’ श्रीकृष्ण की यह शिक्षा गोपियों के लिये नहीं, सामान्य नारी जाति के लिये है। गोपियों का अधिकार विशेष था और उसको प्रकट करने के लिये ही भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसे वचन कहे थे। उन्हें सुनकर गोपियों की क्या दशा हुई और उनके उत्तर में उन्होंने श्रीकृष्ण से क्या प्रार्थना की; वे श्रीकृष्ण को मनुष्य नहीं मानती थीं, उनके पूर्णब्रह्म सनातन स्वरूप को भलीभाँति जानती थीं और यह जानकर ही उनसे प्रेम करती थीं-इस बात का कितना सुन्दर परिचय दिया; यह सब विषय मूल में ही पाठ करने योग्य है। सचमुच जिनके हृदय में भगवान के परमतत्त्व का वैसा अनुपम ज्ञान और भगवान के प्रति वैसा महान अनन्य अनुराग है और सचाई के साथ जिनकी वाणी में वैसे उद्गार है, वे ही विशेष अधिकारवान हैं। गोपियों की प्रार्थना ये यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वे श्रीकृष्ण को अन्तर्यामी, योगेश्वरेश्वर परमात्मा के रूप में पहचानती थीं और जैसे दूसरे लोग गुरु, सखा या माता-पिता के रूप में श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं वैसे ही वे पति के रूप में श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, जो शास्त्रों में मधुर भाव के-उज्ज्वल परम रस के नाम से कहा गया है। |
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