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दिव्य रासक्रीडा का स्वरूप तथा महत्त्व
- मुरली के मधु स्वर में पाकर प्रियतम का रसमय आहान।
- हुई सभी उन्मत्त, चलीं तज लज्जा, धैर्य, शील, कुल, मान।।
- पति, शिशु, गृह, धन, धान्य, वस्त्र, भूषण, गौ, कर भोजन का त्याग।
- चलीं जहाँ जो जैसे थीं, भर मन में प्रियतम का अनुराग।। 4 ।।
- नहीं किसी से पूछा भी, कहा न कुछ भी, चित्त विभोर।
- चलीं वेग से जहाँ बजाते थे मुरली मधुर नन्दकिशोर।।
- प्रेमविवर्धक मुरली-स्वर से हो अति विहल व्रजनारी।
- पहुँची तुरत निकट प्रियतम के भूल स्व-पर की सुधि सारी।। 5 ।।
- थीं वे कष्णगृहीत-मानसा, थीं वे उज्ज्वल रस की मूर्ति।
- थीं वे शुचितम प्रेम पूर्ण नटवर की मधुर लालसा-पूर्ति।।
- आत्मनिवेदन, पूर्ण समर्पण था पवित्रतम उनका भाव।
- जिसमें था न स्व-सुख-वांछा का किंचित् लेश, न किंचित् चाव।। 6।।
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