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- कीर-चच्क्षु-निन्दक निरुपम नासा मणि राजत।
- कुन्चित केश-कलाप कृष्ण लख अलि-कुल लाजत।।
- सिर चूड़ा, शिखिपिच्छ, मुकुट मणिमय अत्युज्ज्वल।
- कर्ण-युगल कमनीय कर्णिका कुण्डल झलमल।।
- कुटिल भ्रुकुटि, दृग-युगल विशद विकसित अम्बुजजम।
- रुचिर भंगिम, ललित त्रिभंगी, मध्यम बंकिम।।
- पीत वसन तडिताभ, दशन द्युतिमय, अरुणाधर।
- मुख प्रसन्न, मुस्कान मधुर, मुरलिका मधुर कर।।
- भक्त-भक्त नित सेवक-भक्तानुग्रह-कातर।
- प्रेम-रसिक रस-प्रेम-सुधा-आस्वादन-तत्पर।।
- व्रज-प्रिय व्रज-जन-सखा-स्वामि-सेवक तन-मन-धन।
- नन्द-यशोदा-तनय बाल-ब्रजरमणी-जीवन।।
- भगवत्ता, सत्ता, ईश्वरता, सारी तजकर।
- व्रज-जन-सुख-हित हेतु द्विभुज निज-इच्छा-वपुधर।।
- भाद्र-अष्टमी, कृष्ण पक्ष, बुधवार अनुत्तम।
- शुभ रोहिणि नक्षत्र, मघ्य-रजनी मंगलतम।।
- हुए प्रकट श्रीनन्द-यशोदा के प्रिय सुत बन।
- निज-स्वरूप-वितरण हित बनकर सबके निजजन।।
बोलो नन्द-यशोदानन्दन भगवान श्रीकृष्ण की जय!
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