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श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीकृष्णचरित में पूर्ण भगवत्ता और पूर्ण मानवता का सम्मेलनयह तो हुई स्वयं-भगवान के तत्त्व, महत्त्व और नित्य रस-माधुरी की बात। पर यों भगवान श्रीकृष्ण के विलक्षण लीला चरित में पूर्ण भगवत्ता और पूर्ण मानवता का एक ही साथ परमाश्चर्यमय सम्मेलन हैं। वे पूर्णतम भगवान हैं और पूर्णतम मानव हैं। उनके चरित्र में जहाँ एक ओर भगवत्ता का अशेष-वैचित्र्यमय लीलाविलास है, दूसरी ओर वैसे ही मानवता का परम और चरम उत्कर्ष है। अनन्त ऐश्वर्य के साथ अनन्त माधुर्य, अप्रतिम अनन्त शौर्य-वीर्य के साथ मुनि-मन-मोहन नित्यनव निरूपम सौन्दर्य, वज्रवत् न्याय-कठोरता के साथ कुसुमवत् प्रेम-कोमलता, नव-नवराज्यनिर्माण-कौशल के साथ स्वयं राज्य ग्रहण में सर्वथा उदासीनता, अनवरत कर्मप्रवणता के साथ सहज पूर्ण वैराग्य और उदासीनता, परम राजनीति-निपुणता के साथ पूर्ण आध्यात्मिकता, सम्पूर्ण विषमता के साथ नित्य समता, सर्वपूज्यता के साथ सेवापरायणता- यों अनन्त युगपत् आपात विरोधी भावों का पूर्ण और सहज समन्वय श्रीकृष्ण के जीवन में प्रत्यक्ष प्रकट है। श्रीकृष्ण सब ओर से पूर्ण हैंसाथ ही जो लोग भगवान श्रीकृष्ण को भगवान न मानकर योगेश्वर, आदर्श महापुरुष, उच्चश्रेणी के निष्काम कर्मयोगी मानते हैं, उनके लिये भी भगवान श्रीकृष्ण ने अपने आदर्श जीवन में जो कुछ दिया है, वह इतना महान् इतना विशाल, इतना उदार, इतना आदर्श इतना अनुकरणीय है कि उसकी कहीं तुलना नहीं है। हम उनको प्रत्येक क्षेत्र में सर्वथा सर्वोच्च आसन पर आसीन पाते हैं। अध्यात्म, धर्म, राजनीति, रण-कौशल, विज्ञान, कला, संगीत, नेतृत्व, सेवा, पारिवारिक जीवन, समाज-सुधार- कहीं भी देखिये, वे सर्वत्र सदा सबके लिये आदर्श, दिव्य आशा का निश्चित संदेश लिये, सफलता, कुशलता और अनुभूति से पूर्ण आचार्य- पद पर प्रतिष्ठित हैं और स्वयं पथप्रदर्शक बनकर- स्वयं ही सुदृढ़ नौका के केवट बनकर सबको सब प्रकार की असुविधाओं और बन्धनों के अगाध समुद्र से सहज पार कर देने के लिये नित्य प्रस्तुत हैं। आज हम इस मंगलमयी उनकी जन्मतिथि के मंगल दिवस पर उनके चरण-शरण होकर अपना जन्म-जीवन सफल और धन्य करें।
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