श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
भगवान ने आदि में लोकसृष्टि की इच्छा से महत्तत्त्वादि-सम्भूत षोडशकलात्मक पुरुषावतार धारण किया था। भगवान के चतुव्र्यूह- श्रीवासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्र और अनिरुद्ध। ‘भगवान’ शब्द श्रीवसुदेव के लिये प्रयुक्त होता है। इन्हीं को ‘आदिदेव नारायण’ भी कहा जाता है। पुरुषावतार के तीन भेद हैं। इनमें आद्यपुरुषावतार उपर्युक्त षोडशकलात्मक पुरुष हैं, ये ही ‘श्रीसंकर्षण’ हैं। इन्हीं को ‘कारणार्णवशायी’ या ‘महाविष्णु’ कहते हैं। पुरुषसूक्त में वर्णित ‘सहस्रशीर्षा पुरुष’ ये ही हैं। ये अशरीरी प्रथम पुरुष कारण-सृष्टि अर्थात् तत्त्वसमूह के आत्मा हैं। आद्य पुरुषावतार भगवान ब्रह्माण्ड में अन्तर्यामी रूप से प्रविष्ट होते हैं, वे द्वितीय पुरुषावतार ‘श्रीप्रद्युम्र’ हैं ये ही ‘गर्भोदकशायी’ हैं। इन्हीं पह्मनाभ भगवान के नाभिकमल से हिरण्यगर्भ का प्रादुर्भाव होता है-
तृतीय पुरुषावतार ‘श्रीअनिरुद्ध’ हैं, जो प्रादेश मात्र विग्रह से समस्त जीवों में अन्तर्यामी रूप से स्थित हैं, प्रत्येक जीव में अधिष्ठत हैं। ये क्षीराब्धिशायी सबके पालन कर्ता हैं।
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