श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा का स्वरूपइसमें उनके संस्पर्श-लेश का भी अभाव है। तो क्या यहाँ अज्ञान है? तो क्या इस साधना में किसी क्रिया का सर्वथा अभाव है? न तो इसमें क्रिया का सर्वथा अभाव है, न यहाँ पर ज्ञान का अभाव है तथा न यहाँ पर अज्ञान की सत्ता है। इसीलिये यह इस प्रकार का विलक्षण भाव है कि जहाँ पूर्ण ज्ञान होते हुए भी ज्ञान की सत्ता नहीं है, जहाँ जीवन में एक-एक क्षण, एक-एक पल प्रेमास्पद की सेवा में रममाण रहते हुए भी क्रिया का सर्वथा अभाव है। क्षणभर के लिये भी अवकाश नहीं है— प्रेमी को। वह सोता नहीं, अलसाता नहीं, भागकर जंगल में जाता नहीं, वह घर में रमता नहीं, परंतु उसको अवकाश नहीं। फिर भी उसके पास कर्म-संश्रव-लेश नहीं। कर्मसंस्पर्शशून्य जीवन है उसका। उसका राधाभाव में कर्मसंस्पर्श-शून्यता है और है ज्ञान-संस्पर्शशून्यता। जो ज्ञान अज्ञान को मिटाता है, जो ज्ञान किसी को प्रभावित करता है, जिस ज्ञान से किसी ज्ञान की सत्ता की सिद्धि होती है, वह ज्ञान यहाँ नहीं है। ज्ञान की असत्ता हैी— पर पूर्णतम ज्ञान है। कर्म की असत्ता है, पर प्रेमास्पद की सेवारूप कर्ममय जीवन है। कर्म नहीं, ज्ञान नहीं। ज्ञान-कर्मादिसंस्पर्शशून्य जो केवल प्रेमभाव है, वही महाभाव है और उसी महाभाव की मूर्तिमयी प्रतिमा श्रीराधा हैं। यह राधा का एक आदर्श स्वरूप है— संक्षेप में। श्रीराधाजी के सम्बन्ध में जो कुछ कहा जाय, सब ठीक है। अपनी-अपनी आँखों से श्रीराधा और श्यामसुन्दर को सबने देखा और सबने भिन्न-भिन्न भाव से देखा है। श्रीकृष्ण की राधा एक हैं, शुकदेव मुनि की राधा एक हैं, भक्तों की— प्रेमियों की राधा एक है, कवियों की राधा एक है और मन में गंदगी रखने वालों की भी राधा एक है। इन सबका अगर मिश्रण कर लिया जाय तो राधा का स्वरूप एक विचित्र-सा बन जाता है। अपने-अपने भाव से, अपनी-अपनी आँखों से जिन्होंने जैसा देखा, जिनको जैसा रुचा, वैसा ही उन लोगों ने कहा और इसके लिये उनका क्षेत्र उनकी सराहना करता है। राधा के सम्बन्ध में आज दिन में संक्षेप में जो कुछ कहा गया था, उसका सार यह था कि दो धाराएँ हैं साधना की। एक धारा में ‘अहम्’ के परिणाम की चिन्ता है, ‘अहम्’ के मंगल की आकांक्षा है और दूसरी धारा इस प्रकार की है कि जहाँ ‘अहम्’ की सर्वथा सम्पूर्णतया विस्मृति है। जहाँ ‘अहम्’ की सर्वथा विस्मृति है, उसी का मूर्तिमान् रूप श्रीराधा हैं। इस साधन राज्य में भी राधा के भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। राधा श्रीकृष्ण की भक्ता हैं, प्रेमिका हैं, उपासिका-आराधिका हैं और राधा श्रीकृष्ण की उपास्या-आराध्या भी हैं। |
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