श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
क्या खूब। श्रीराधा क्या श्रीकृष्ण की नहीं थीं जो उनके लिये इतने कड़े शब्दों का प्रयोग किया गया? परंतु प्रणय कोप ने गोपियों को यह बात भुला दी थी। उनकी ऐसी आतुरता देख कर भगवान ने अपनी अमृतमयी दृष्टि से राधा में जीवन का संचार कर दिया। मानिनी राधा रोती-रोती उठ बैठी। गोपियों ने उसे गोद में लेकर बहुत कुछ समझाया-बुझाया, परंतु उसका कलेजा न थमा। अन्त में श्रीकृष्णचन्द्र ने उसे ढाढ़स बँधाते हुऐ कहा- ‘राधे! मैं तुमसे परम श्रेष्ट आध्यात्मिक ज्ञान का वर्णन करता हूँ, जिसके श्रवण मात्र से हल जोतने वाला मूर्ख मनुष्य भी पण्डित हो जाता है। तुम मुझे अपनी ही स्वरूपभूता रुक्मिणी आदि महिषियों का पति मान कर क्यों दुःख करती हो? मैं तो स्वभाव से ही सभी का स्वामी हूँ। राधे! कार्य और कारण के रूप में मैं ही अलग-अलग प्रकाशित हो रहा हूँ। मैं सभी का एक मात्र आत्मा हूँ और अपने स्वरूप में प्रकाशित हूँ। ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त समस्त जीवों में मैं ही व्यक्त हो रहा हूँ। |
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