श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इससे सिद्ध है कि भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य शरीर इन भौतिक पदार्थों से रहित दिव्य भगवत्स्वरूप है। पद्मपुराण, पातालखण्ड के एक कथा-प्रसंग में आया है कि एक बार भगवान शंकर जो सजल-जलद-नील- स्निग्धश्यामवर्ण अखिल-कल्याण-गुण-मन्दिर भगवान श्रीकृष्ण ने दर्शन देकर हँसते हुए उनसे इस प्रकार सुधा-मधुर वचन कहे-
‘हे अनघ! तुमने जो आज मेरा यह अलौकिक रूप देखा है, उपनिषत-समूह मेरे इसी घनीभूत निर्मल प्रियतम सच्चिदानन्दमय रूप का ही निर्गुण, निराकार, निष्क्रिय और परात्पर ब्रह्म कहकर प्रतिपादन करते हैं। मुझमें प्रकृतिजनित गुण न होने तथा मेरे (भगवत्स्वरूपभूत) गुण लोकदृष्टि में सिद्ध न होने के कारण सब मुझे ‘निर्गुण’ कहते हैं। मेरा कहीं अन्त न होने से लोकों में मैं ‘ईश्वर’ कहा जाता हूँ। महेश्वर! चर्मचक्षुओं के द्वारा मेरा यह चिदानन्दमय दिव्य रूप किसी को दीखता नहीं, इसीलिये वेदसमूह मुझे अरूप या ‘निराकार’ कहते हैं।’ |
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क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ पद्मपुराण, पातालखण्ड 2। 66-69
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