श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्यामसुन्दर की निर्दयता देखकर उद्धव के दोनों नेत्रों में क्रोध छा गया। फिर व्रजांगनाओं के प्रेम को स्मरण करके वे रस-भरे वचन बोले ‘नन्दलाल! सुनो, तुम्हारी सारी करुणामयी रसिकता प्रेम की बातें झूटी हैं। तभी तक लाख कह लो, जब तक मुट्ठी बँधी है। अब तो व्रज में जाकर मैंने तुम्हारे निर्दय रूप को जान लिया है। जो तुम्हारा अवलम्ब लेते हैं; उनको तुम कुएँ में ढकेल देते हो! यह तुम्हारा कौन-सा धर्म है?’
|
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |