श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
8. महाभाव-
विषय भोगों के त्यागी भगवज्जन के मन में शुद्ध सात्तिकी श्रीकृष्ण-सुखेच्छा रूप जिस पवित्र अनुपम वृत्ति का उदय होता है, वह ‘प्रेम’ है। वह प्रेम अपने विषय (श्रीकृष्ण) को पाकर जब चित्त को द्रवित कर देता है, तब प्रेमी जन के उस धन को ‘स्नेह’ कहा जाता है। दीपक जब घृत से पूर्ण होता है, तब उसमें जैसे उष्णता और ज्योति बढ़ती है, वैसे ही स्नेह के उदय से हृदय में श्रीकृष्ण दर्शन की लालसा बढ़ती है। जिसमें अत्यन्त नवीन माधुर्य का अनुभव होता है, ‘स्नेह’ के ऐसे उत्कर्ष को ‘मान’ कहा जाता है। श्रीश्यामसुन्दर को अधिक सुख देने के लिये हृदय के भाव को छिपाकर जो वक्रता और कामना प्रकट होती है, उसी मधुर स्थिति का नाम ‘मान’ है। |
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