श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-स्वरूप-गुण-महिमासं. 2018 वि. के श्रीराधाष्टमी-महोत्सव पर प्रवचन
श्रीकृष्ण से मिलने की आशा में जब दुःख ही परम सुख हो जाता है और अमिलन में सभी सुख अत्यन्त दुःखमय दिखायी देने लगते हैं- यों प्रणय जब उत्कर्ष को प्राप्त होकर इस स्थिति पर पहुँच जाता है, तब सहज ही उस पावन प्रेम का नाम ‘राग’ होता है। जब नित्य अनुभूति श्रीकृष्ण पल-पल में नये दिखायी देते हैं, प्रति पल जब वे अधिकाधिक अत्यन्त्र पवित्र, सुन्दर, सरल और परम मधुर दिखायी देते हैं, राग जब परम उत्कर्ष को प्राप्त होकर असीम रूप से बढ़ जाता है, तब जो ऐसे लक्षण प्रकट होते हैं, वे ‘अनुराग’ नाम धारण करते हैं। जब प्राण त्याग से भी अधिक कठिन दुःख अत्यन्त तुच्छ हो जाता है, बल्कि श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिये जब वह परम मधुर तथा परम सुखमय हो जाता है और श्रीकृष्ण के मिलने के तथा उनके सुख के लिये जब मन में अत्यन्त चाव बढ़ जाता है, वह बढ़ा हुआ अनुराग ही शुभ ‘भाव’ नाम धारण करता है। यह भाव जब सहज ही उच्चतम स्तर पर पहुँच जाता है, तब उस मधुरतम परम निर्मल मन भावन भाव को ‘महाभाव’ कहते हैं। इस महाभाव के उज्ज्वल पवित्र स्वर्ण सदृश ‘मोदन’ तथा ‘मादन’ नामक दो सर्वोच्च स्तर हैं, जिनसे पूर्ण प्रेम का प्राकट्य होता है। इनमें ‘मादन’ नामक महाभाव परम दुर्लभ तथा स्वाभाविक ही स्वतन्त्र है। उसका केवल श्रीराधाजी में ही प्राकट्य है, अन्यत्र कहीं कभी भी नहीं है। |
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