श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
किसी-किसी के मत से राधा की कल्पना अत्यन्त आधुनिक है। इसी प्रकार अन्याय अनेक मतवाद हैं। इन सब मतावलम्बी महानुभावों के मत इनके लिये गौरव की वस्तु हैं और रहें। मेरा इनसे न तो कोई विवाद है न मैं इनसे किसी बात को मानने का ही तनिक आग्रह करता हूँ।
मेरा तो यह निवेदन है कि विश्वासी हृदय के लोग, जो भोग-कामना से, इन्द्रियासक्ति से, काम-क्रोधादि के निम्नस्तर से, जागतिक कामना-वासना, अभिमान-अहंकार की भूमिका से- आसुरी सम्पदा के सम्पूर्ण दुर्विषयों से ऊपर उठकर, द्वेष-कलह, वैर-हिंसा आदि कुप्रवृत्तियों से बचकर तथा शरीर, शरीर के सम्बन्धी प्राणी-पदार्थ-परिस्थिति का मोह छोड़कर भगवान के निर्मल दिव्य पवित्र विषय वासना रहित, दिव्य ज्ञानरश्मि से आलोकित त्यागमय प्रेम के निर्मल राज्य में प्रवेश करके मानव-जीवन को सफल करना चाहते हैं- इस रस मार्ग से जो भगवान को परम प्रेष्ठ के रूप में प्राप्त करना चाहते है, वे सारे शंका-संदेह को छोड़कर श्रीराधा-माधव में श्रद्धा करें और काम की कलुषित तथा कुत्सिल कल्पनाओं से सदा बचकर श्रीराधा-माधव के पवित्रमय चरित्र-सुधा-सागर में डुबकी लगाये तो निश्चय ही श्रीराधा-माधव की कृपा से वे अपने साध्य को प्राप्त करके कृतार्थ हो सकेंगे। अन्त में श्रीराधा-माधव के श्रीचरणों में विनीत प्रार्थना है कि वे हम सबको अन्धतम कुत्सित विषय-काम-मार्ग से हटाकर उज्ज्वलतम परम पवित्र दिव्य प्रेम मार्ग पर चढ़ाकर अपने चरण-रज-कण की ओर अग्रसर करें। |
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