श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
जहाँ भगवान श्रीचैतन्यमहाप्रभु-सदृश परम त्यागमय आदर्श जीवन महापुरुषों ने, नित्य वन्दनीय आचार्यों ने, अन्यान्य संत-महात्माओं ने तथा कवियों, प्रेमियों एवं भक्तों ने साक्षात भगवत्तत्त्व का दर्शन करके उनकी पवित्र रसमयी लीला का तथा तत्त्व का ऊँचे आध्यात्मिक स्तर पर रसास्वादन तथा प्रसार किया, वहाँ विलास-मोहरत कामकलुषितचि कवियों तथा लेखकों ने श्रीराधा-माधव के नाम पर अत्यन्त निम्नस्तर के अधोगति में ले जाने वाले असत साहित्य का सृजन किया और अब भी पापमति लोग उनके नाम पर पापाचार करते हैं। देह दृष्टि से श्रीराधारानी श्रीकृष्ण की क्या होती थीं? उनका श्रीकृष्ण के साथ विवाह हुआ या नहीं, यह स्वकीया प्रेम की बात है या परकीय प्रेम की? इन सब बातों का संक्षेप में उत्तर राधाष्टमी के पिछले प्रवचनों में दिया जा चुका है। तथापि यही निवेदन करना उचित प्रतीत होता है कि इन सब शंकाओं का समाधान करने की न तो मुझमें योग्यता है, न अधिकार है तथा न इसमें अपने लिये किसी कल्याण की ही सम्भावना है। श्रीराधा-माधव को अस्थिचर्ममय, जड-भौतिक मानने से ही ये सब प्रश्न उठते हैं और केवल भौतिक शरीर मानने वालों के लिये इस भाव-राज्य में प्रवेशाधिकार ही नहीं है। यहाँ न भौतिक जगत है, न भौतिक शरीर, न भौतिक क्रियाकलाप ही और न राधा-माधव की स्वरूप-पृथकता ही है; वरं दोनों में भेद बुद्धि करने वालों के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं ही श्रीराधाजी से कहा है-
“जो नराधम तुम्हारे और मेरे में भेद बुद्धि करेगा, वह चन्द्रमा तथा सूर्य के रहने तक ‘कालसूत्र’नामक नरक में निवास करेगा।” श्रीराधा-माधव को जड और भौतिक शरीर मानने वालों के साथ ही कुछ लोग श्रीराधा-माधव के लीला चरित्र को केवल कविकल्पना मानते हैं, इसी से वे इस कल्पना में क्रम विकास मानते हुए अपने ढंग से इसका विवेचन करते हैं। |
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