श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
“प्यारी लाडली! अरी, मेरी बात सुनो। आज प्रातःकाल यमुना-तट पर साँवरे चले गये थे, वहाँ हम बहुत-सी सखियाँ थी। श्यामसुन्दर ने प्रेमानन्द-अश्रुओं को छलकती आँखों से, अत्यन्त सुखभरे हृदय से सभी को सुख देने वाले बड़े मधुर वचन कहे। प्रियतम के मुख से निकले उन सरस वचनों को सब सखियों ने सुना। वे वचन ये थे- ‘सखियो! राधा के समान रूप, शील और गुणों की खान मेरी परम प्रेमिका जगत् में कहीं कोई है ही नहीं।’ प्रियतम के मुख कमल से अपनी प्यारी सखी के गुणगान से भरे इन शब्दों को सुनते ही सब सखियों के मुख कमल तुरंत खिल उठे- असीम मधुर मुस्कान से भर गये और वे प्यारे प्रियतम के वचनों को धन्य-धन्य कहती हुई बोलीं- ‘हमारी प्यारी राधिका परम धन्य है, जिनकी प्रशंसा स्वयं प्रियतम करते हैं!’
श्रीराधाजी विषाद ग्रस्त तो थीं ही; सखी ने जब यह बात सुनायी और उन्होंने जब प्रियतम के तथा सखियों के द्वारा अपनी प्रशंसा के वाक्य सुने, तब उनके नेत्रों से आँसू बहने लगे- वे रोकर अपने दोषों का बखान करती हुई कहने लगीं- |
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