श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
नित्य श्रीकृष्णाह्लादिनी श्रीराधिकाजी ने महान सौभाग्यशाली वृषभानुपुर में परम पावन पुण्यमय सौन्दर्य-माधुर्य निधरूप में प्रकट होकर अपने अभिन्न स्वरूप मधुरतम श्रीश्यामसुन्दर के साथ अपनी कायव्यूहरूपा श्रीगोपदेवियों को साथ रखकर जो दिव्य लीलाएँ कीं, उनको ठीक यथार्थ रूप से यथा साध्य समझकर स्मरण करने पर जगत के समस्त दुर्गुण-दुर्विचारों का आत्यन्तिक विनाश हो जाता है। भोगासक्ति, भोग कामना, भोग वासना, इन्द्रिय-तृप्ति की इच्छा, जागतिक धन-वैभव-पद-अधिकार, यश-कीर्ति आदि के मनोरथ; सब प्रकार के लौकिक-पारलौकिक पदार्थों की, परिस्थितियों की प्राप्ति-लालसा, क्रोध, लोभ, मोह, मद, ईर्ष्या, अभिमान, वैर, हिंसा; भोग सुख, स्वर्ग सुख, उत्तम लोक तथा सद्गति की तृष्णा; साधनाभिमान, भक्त्यभिमान, ज्ञानाभिमान आदि समस्त प्रेम विघ्न सदा के लिये मर जाते हैं और पवित्रतम भाव से केवल मधुरतम भगवत्संग की ही लालसा जग उठती है तथा भगवान का ही नित्य संस्पर्श प्राप्त होता है। पर संस्पर्श प्राप्त करने वाले मन-प्राण, अंग-अवयव भी भगवद्रूप ही हो जाते हैं। विशुद्ध प्रेम रस भावमयी श्रीगोपांगनाओं के लिये कहा जाता है- ‘दिव्य देवांगनाओं की गोपरमणियों से तुलना नहीं की जा सकती; क्योंकि जो श्रीहरि समस्त जड़-चेतन को सदा अपनी माया की डोरी से नाथे नचाते हैं, वे स्वयं उन गोपियों के साथ कर ताल बाजते हुए नृत्य करते हैं। जिन श्रीगोपदेवियों की समस्त इन्द्रियाँ भगवद्रुप में परिणत होकर अपनी इच्छानुसार भगवान का संस्पर्श प्राप्त करके सफल हो गयीं, जिनकी भगवन्मयी मन-बुद्धि निरन्तर अपने में मुरारि भगवान को बसे देखकर धन्य हो गयीं, जिनके नेत्र कमलों में मदन का मद हरण करने वाले स्वयं भगवान मधुर मधुकर बनकर नित्य बसे रहते हैं, जिनके कानों में भगवान स्वयं मुरली की मधुरतम ध्वनि और सर्वजन सुखकारिणी अपनी मधुर स्वर-लहरी के रूप में बस रहे हैं, जिनकी घ्राणेन्द्रिय में वे सबको मत वाल बना देने वाली मधुर-सुन्दर सुगन्ध बनकर बस गये हैं, जिनकी रसना पर वे परम रुचिकर मुनि-मनहारी मधुर-मनोहर पवित्र रस मय अन्न बनकर विराज रहे हैं, जिनके सारे अंगों में वे मधुर सुख देने वाले अपने-आपको ही मत्त कर देने वाला अंग-स्पर्श बनकर बसे हैं- |
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