श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीमद्भागवत में गुप्त रूप से राधा</center> कुछ सज्जन पूछते हैं कि श्रीमद्भागवत में राधा का नाम क्यों नहीं है? इसका उत्तर यह है कि श्रीमद्भागवत में तो यों श्रीयशोदाजी को छोड़कर किसी भी गोपी का नाम नहीं है, इसलिये राधाजी का नाम न होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है; परंतु भागवत में श्रीराधा हैं, यद्यपि वे दूध में घृत की भाँति अप्रकट हैं। भक्त अनुभवी टीकाकारों ने श्रीराधिकाजी का भागवत में प्रत्यक्ष किया है और उन्होंने संकेत भी किये हैं-
‘सात्वत- भक्तों के पालक, कुयोगियों के लिये दुर्ज्ञेय प्रभु को हम नमस्कार करते हैं। वे भगवान कैसे हैं? स्वधामनि- अपने धाम वृन्दावन में; राधसा- श्रीराधा के साथ; रंस्यते - क्रीड़ा करने वाले हैं और वे राधा कैसी हैं? जिन्होंने समानता और आधिक्य को निरस्त कर दिया है अर्थात जिनसे बढ़कर तो क्या, समानता करने वाला भी कोई नहीं है।’
रास-प्रसंग में एक गोपी कहती है- “अवश्य ही सर्वशक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की वे ‘आराधिका’ (आराधन करने वाली राधिका) होंगी। इसीलिये उन पर प्रसन्न होकर हमारे प्यारे श्रीकृष्ण ने हमको छोड़ दिया है और उन्हें एकान्त में ले गये हैं।”
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