श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-माधव का महत्त्वस्वरूपतत्त्व और सम्बन्धश्रीराधा-माधव के इस विवाह-प्रसंग में श्रीकृष्ण ने जो कुछ कहा है, उससे श्रीराधा का महत्त्व तथा श्रीराधा के साथ श्रीकृष्ण का अभिन्न सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। इसके अतिरिक्त श्रीदेवीभागवत में आया है— <center>
‘श्रीराधाजी श्रीकृष्ण को प्राणों से बढ़कर हैं; कारण, श्रीकृष्ण राधा के अधीन हैं। रासेश्वरी राधा नित्य उनके समीप रहती हैं, उनके बिना श्रीकृष्ण रह ही नहीं सकते।’ पद्मपुराण में देवर्षि नारद से श्रीकृष्ण कहते हैं—
‘अग्नि में जैसे दाहिका शक्ति है, वैसे ही मेरी प्रियतमा श्रीराधा हैं; उनके साथ क्षण मात्र के लिये मेरा विछोह नहीं होता।’ ऐसे असंख्य प्रमाण हैं। इससे स्पष्ट है कि श्रीराधा-कृष्ण एक ही तत्त्व के दो नित्य-स्वरूप हैं। इतने पर भी जिनको शंका हो, उनके लिये तो कुछ कहना ही नहीं है। यहाँ फिर यह प्रश्न किया जाता है कि ‘श्रीराधा-माधव का यह विवाह-मिलन गुप्त रूप से क्यों किया गया?’ इसका उत्तर यह है कि विषय विमुग्ध सर्वसाधारण के लिये यह लाभ की वस्तु नहीं है। वे इसमें अपनी दूषित वृत्ति के कारण भ्रान्त कल्पना करके अपने लिये नित्य नरकों का पथ प्रशस्त कर लेंगे। इसलिये यह वस्तु सदा ही गुप्त है, गुप्त ही रहेगी। भगवानश्रीराधा-माधव के अनन्य प्रेमी जन ही इसके पात्र हैं, उन्हीं के सामने इसका प्रकाश होता है। वस्तुतः यहाँ साधन की परिसमाप्ति है। |
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