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श्रीवृषभानुनन्दिनी से प्रार्थना
विश्व प्रकृति के प्रत्येक स्पन्दन में बिन्दु रूप से जो विदग्ध भाव, अनुराग, वात्सल्य, कृपा, लावण्य, रूप (सौन्दर्य) और केलिरस (माधुर्य) वर्तमान है- रासेश्वरी, नित्य-निकुन्जेश्वरी, श्रीवृषभानुनन्दिनी, उन्हीं सातों रसों की अनन्त अगाध उदधि हैं। इस प्रकार नित्यानन्द रसमय सप्त-समुद्रवती श्रीराधिका श्यामसुन्दर आनन्दकन्द के नित्य दिव्य रमणानन्द में अनादिकाल से ही उन्मादिनी हैं- नित्य कुलत्यागिनी हैं। इन्हीं के सहज सरल स्वच्छ भाव के शुद्ध रस से, इन्हीं के भावानुरागरूप दधिमण्ड से, इन्हीं की वात्सल्यमयी दुग्ध धारा से, इन्हीं की परम स्त्रिग्ध घृतवत् अपार कृपा से, इन्हीं की लावण्य-मदिरा से, इन्हीं के छवि रूप सुन्दर मधुर इक्षुरस से और इन्हीं के केलि-विलास-विन्यास रूप क्षारतत्त्व से समस्त अनन्त विश्वब्रह्माण्ड नित्य अनुरन्जित, अनुप्राणित और ओत-प्रोत हैं। ऐसी अनन्त विचित्र सुधारसमयी, प्राणमयी, विश्वरहस्य की चरम तथा सार्थक मीमांसामूर्ति श्रीवृषभानुनन्दिनी का दिव्य स्फुरण जिसके जीवन में नहीं हो पाया, उसका सभी कुछ व्यर्थ-अनर्थ है। देवी राधिके! अपने ऐसे दिव्य स्फुरण से मेरे हृदय को कृतार्थ कर दो—
- वैदग्ध्यसिन्धुरनुरागरसैकसिन्ध-
- र्वात्सल्यसिन्धुरतिसान्द्रकृपैकसिन्धुः
- लावण्यसिन्धुरमृतच्छविरूपसिन्धुः
- श्रीराधिका स्फुरतु मे हृदि केलिसिन्धुः।।
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