श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
‘श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ पर सम्माननीय विद्वानों के विचारयह ग्रन्थ एक रस ग्रन्थ है। श्रीराधा-गोविन्द की लीला मधुर रस का एक मधुरतम विषय हैं फिर यह केवल रस ग्रन्थ ही नहीं है, इसमें तत्त्व का विश्लेषण करते हुए रस का परिवेशन किया गया है। ग्रन्थ सात प्रकरणों में विभक्त है। प्रथम प्रकरण में श्रीराधा-रानी के स्वरूप, श्रीराधा-प्रेम का रहस्य और राधा-प्रेम की महिमा का समुचित रीति से विवेचन किया गया है। द्वितीय प्रकरण ‘श्रीकृष्ण’ शीर्षक है। इसमें श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप, उनकी पूर्ण भगवत्ता, दिव्य सच्चिदानन्दमय विग्रह, उनके दिव्य चरित्र की उज्ज्वलता और महिमा प्रभूति विषयों पर आलोचना की गयी है। तृतीय प्रकरण में श्रीराधा-माधव के युगल तत्त्व, दोनों के पवित्रतम सम्बन्ध, युगल उपासना एवं युगल सेवा का निरूपण किया गया है। चतुर्थ प्रकरण ‘भावराज्य और लीला-रहस्य’ शीर्षक है। इसमें ग्रन्थकार ने भगवदवतार-रहस्य, माखन-चोरी, चीरहरण, श्रीरास आदि निगूढ़ लीलाओं के रहस्य को सुबोध्य-भाव से समझाने की चेष्टा की है। भक्त-पराधीन भगवान भक्त के प्रति अपने को किस प्रकार सम्पूर्ण रूप से विलय कर देते हैं, इन सब लीलाओं के माध्यम से भक्त ग्रन्थकार ने उसी का विश्लेषण किया है। पच्चम प्रकरण ‘प्रेमतत्त्व’ शीर्षक है। रति, प्रेम, स्नेह, मान, प्रणय, राग, अनुराग, भाव और महाभाव- इन भावों पर इसमें विचार किया गया है। षष्ठ प्रकरण है ‘गोपांगना’ विषयक। इसमें उनके कृष्ण प्रेम तथा स्वकीया और परकीया भाव पर विचार करते हुए उनकी उज्ज्वल पवित्रता का प्रतिपादन किया गया हैं सप्तम प्रकरण ‘प्रकीर्ण’ अध्याय है। उपर्युक्त प्रसंगों से संश्लिष्ट अतिरिक्त विषयों पर इसमें विचार किया गया है। नौ सुन्दर रंगीन चित्रों से ग्रन्थ को सुशोभित करके इसकी सुन्दरता और उपादेयता को समृद्ध कर दिया गया है। भक्तवर प्रवीण ग्रन्थकार माननीय श्रीहनुमानप्रसाद पोद्दार महाशय एक निष्ठावान् साधकाग्रेसर पुरुष हैं! वे बहुप्रचलित धार्मिक मासिक पत्र ‘कल्याण’ के सुयोग्य दीर्घस्थायी सम्पादक है। उन्होंने अपने सुदीर्घ 35 वर्षों में उपर्युक्त प्रसंगों पर ‘कल्याण’ में जो लेख लिखे हैं और विभिन्न सत्संगों में जो भाषाणादि तथा समय-समय पर मौखिक उपदेश दिये हैं, उन्हीं के समावेश से यह ग्रन्थ समृद्ध है। तत्त्वपिपासु और श्रीराधकृष्ण-युगल के उपासकों के लिये यह ग्रन्थ विशेष उपादेय होगा, यह हमारी दृढ़ धारणा है। इस महामूल्य ग्रन्थ का हम बहुत प्रचार चाहते हैं। |
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